The Hindi poetry Diaries
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काका हाथरसी की हास्य कविता: ...कहें 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला
क्या कहता है, रह न click here गई अब तेरे भाजन में हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
आँखिमचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।९२।
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना: कितना चौड़ा पाट नदी का, कितनी भारी शाम
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला! मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
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